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विश्व पुस्तक मेले में नरेंद्र सिंह नेगी की तीन पुस्तकों का विमोचन

—–uttarakhandhimalaya.in —–
नई दिल्ली, 5 मार्च  ( शास्त्री  )।   प्रगति मैदान दिल्ली में आयोजित पुस्तक मेले में विनसर पब्लिकेशन और धाद द्वारा एक संवाद आयोजित किया गया। गढ़वाली भाषा में यह पहला संवाद था, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित भाषा और साहित्य के मंच पर आयोजित किया गया। इस संवाद कार्यक्रम में उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी की तीन पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया। इस संवाद का विषय था * गढ़वाली भाषा और नरेंद्र सिंह नेगी * इस संवाद में देश भर से गढ़वाली भाषा में काम करने वाले लेखकों, साहित्यकारों और मातृभाषा अभियान को चलाने वाले लोगों ने प्रतिभाग किया।
          गढ़वाली भाषा के संवाद कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए लोकगायक गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि गढ़वाली भाषा व्यापक अर्थ रखती है और इस पर विचार रखने के लिए मैं अधिकृत नहीं हूं क्योंकि मैं कोई भाषाविद नहीं हूं। हांअगर यह विषय गढ़वाली गीत और नरेंद्र सिंह नेगी होता तो मैं कुछ कह सकता था लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि  हमारे पूर्वजों ने हमें  संपति के रूप में हमें सिर्फ अपने खेत और मकान ही नहीं दिये कोई पूर्वजों ने हमें अपनी भाषा भी विरासत में दी है वह भी हमारी पैतृक सम्पत्ति है। भाषा को भी पूंजी की तरह लिया जाना चाहिए उसे आत्मसात किया जाना चाहिए स्वीकार किया जाना चाहिए तभी हम समृद्ध हो पाएंगे ।
        नेगी ने कहा कि हमारी भाषा में जो हमारा लोक ज्ञान- विज्ञान है अगर हम अपनी भाषा को भूल जाएंगे तो पर्वतीय अंचल हिमालय क्षेत्र के ज्ञान की जो परंपरा है वह खंडित तो जाएगी ।जडी- बूटियों से संबंधित जो ज्ञान है वह खंडित हो जाएगा खारिज हो जाएगा यह तभी बचा रह सकता है जब भाषा बची रहेगी । हमारी भाषा में जो शब्दों की ताकत है वह बहुत ही सशक्त है।
      इस संवाद कार्यक्रम में नरेंद्र सिंह नेगी की कविता पोथी *अब,जबकि* का लोकार्पण किया गया इस कविता संग्रह में उनकी सैंतीस कविताएं संकलित हैं जिनमें हृदयाघात के दौरान अस्पताल के आईसीयू मे लिखी गई कविता * डट्यूं छौं मि* भी शामिल है।
    गढ़वाली भाषा की संजीदा कवियित्री बीना बेंजवाल ने कहा कि नरेंद्र सिंह नेगी जी ने नारी पीड़ा को स्वर दिये। उन्होंने अपनी रचनाओं में पहाड़ की नारी की व्यथा को वाणी भी और उसकी मन के भावों को उद्घाटित किया ।
      इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध भाषाविद साकेत बहुगुणा ने कहा कि नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतों में  जिस तरह की भाषा का प्रयोग होता है वह अपने आप में एक साक्ष्य है कि गढ़वाली भाषा कितनी समृद्ध है और उस भाषा की शब्द संपदा कितनी महत्वपूर्ण है और उसकी सामर्थ्य क्या है । गढ़वाली भाषा में कई जगह दो- दो क्रियाएं एक साथ प्रयोग की जाती हैं जो दुनिया की बिरली भाषाओं में ही प्रयोग होती हैं। यहां यह इस बात का प्रमाण है कि गढ़वाली भाषा व्याकरणीय रूप से कितनी समर्थ है  यह भाषा की अपनी संपदा है।
     संवाद कार्यक्रम में  लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी की दूसरी पुस्तक* तेरी खुद तेरु ख्याल * का लोकार्पण किया गया इस पुस्तक में तेरह फिल्मों की 68 गीत संकलित हैं इस पुस्तक में घरजवैं,बेटी ब्वारी ,बंटवारु, चक्रचाल,छम्म घुंघरु , फ्योंलि ज्वान ह्वेगे ,जै धारी देवी, औंसी की रात , मेरी गंगा होली मैंमू आली, सुबेरो घाम,मेजर निरालाऔर बथौं फिल्म के गीत संकलित हैं।         पुस्तक में जहां गीत संकलित वहीं गढ़वाली फिल्मों से संबंधित जानकारी भी पाठकों को मिलती है।
          इस कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता दिगमोहन सिंह नेगी ने कहा कि नई पीढ़ी नेगी जी के गीतों से अपनी भाषा को समझती है । प्रवासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलता है ।ये गीत लोक परंपराओं को जानने और समझने का अवसर देते हैं। उत्तराखण्ड से बाहर रह रहे गढ़वाली समाज के लोग नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतों से ही अपने इतिहास को भी जानते हैं। नेगी सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं लिखते बल्कि वह उत्तराखंडी चिंता और चिंतन को भी अपने गीतों मिलाते हैं नरेंद्र सिंह नेगी ऐसे गीतकार गायक हैं जिन्होंने गंगा के मेली होने की बात सबसे पहली की। उन्होंने गंगा की स्वच्छता की लिए चलाई जाने वाली परियोजनाओं, अभियानों की शुरुआत से पहले ही गंगा के गंदे होने की बात अपने गीतों में कर दी थी। उनका *गंदळु कैरि यालि तेरु छाळु पाणि गंगा जी* गीत बहुत ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध है ।
       दिल्ली और एनसीआर में गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषा की कक्षाएं संचालित करने वाले डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि  हमने अपनी भाषा के प्रति यह संवेदनशीलता नरेंद्र सिंह नेगी जी और उनके गीतों को सुनकर ही महसूस की और लगा कि हमें अपनी भावी पीढ़ी को अपनी भाषा की जानकारी देनी चाहिए।  उत्तराखंडी समाज और उत्तराखंड समाज की भावी पीढ़ी के लिए भी यह बहुत आवश्यक है । हम ग्रीष्मावकाश में इस कार्य को अपनी जिम्मेदारी और जरूरी सामाजिक कार्य समझते हुए करते हैं।ग्रीष्मावकाश के दौरान नई पीढ़ी को भाषा से जोड़ने के लिए चालीस स्थानों पर मातृभाषा की कक्षाएं संचालित थी जाती हैं।
         उच्च न्यायालय के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं संजय शर्मा धर्म उड़ाने कहा कि नरेंद्र सिंह नेगी ऐसे रचनाकार और गायक हैं जिन्होंने हिमालय के हिमशिखरों को सोने और चांदी से अलंकृत किया उनके पास ऐसी सौन्दर्य दृष्टि है।इससे पता चलता है कि वह प्रकृति के साथ कैसे तादात्म्य स्थापित करते हैं जो अपनी तरह का अद्भुत और अनूठा है।
          गढ़वाली भाषा पर आयोजित इस संवाद कार्यक्रम में नरेंद्र सिंह नेगी के एक सौ एक गीतों की पुस्तक * तुम दगड़ि ये गीत राला * भी लोकार्पित की गई ।इस पुस्तक में उनके तमाम जनगीतों के साथ बहुत ही प्रसिद्ध*नौछमी नारैण* गीत भी सम्मिलित है।इस संवाद कार्यक्रम का संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया।

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