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विश्व विख्यात राजजात का लाटू देवता, जिसके दर्शन पुजारी भी नहीं कर सकता, अद्भुत इष्टदेव की विचित्र लोक मान्यताएँ

सदियों पुराने काष्ठ पात्र  के अंदर क्या है, कोई नहीं जानता। पुजारी भी आँखों पर पट्टी  बांध कर गर्भगृह में पूजा करता है। लोग पात्र  के अंदर नाग मणि  होना मानते हैँ

–महिपाल गुसाईं–

उत्तराखंड में मां नंदा भगवती की लाटू देवता के बगैर अधूरी मानी जाती हैं। प्रति वर्ष आयोजित होने वाली लोकजात यात्रा एवं 12 वर्षों के समयांतराल में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात यात्रा बिना लाटू के संभव नही है। पूरे देश में लाटू का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध मंदिर देवाल ब्लाक के वाण गांव में है, लोकजात एवं श्री नंदा राजजात यात्रा का आबादी वाला अंतिम गांव भी हैं। यहीं पर लाटू देवता का मंदिर है।

वाण स्थित लाटू धाम के कपाट बीते दिवस शुक्रवार को विधि-विधान के साथ छह माह के लिए आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इस संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार लाटू देवता नंदा देवी का चचेरा भाई माना जाता है, जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार लाटू को कन्नौज का एक ब्राह्मण एवं मां भगवती का बड़ा उपासक था। लाटू का शाब्दिक अर्थ लाटा अथवा गूंगा होता हैं। मान्यता के अनुसार लाटू बचपन से ही गूंगे नहीं थे। वे दुर्घटनावश गूंगे हुए थे, इस संबंध में प्रचलित झोड़ो (देवीस्तुती-लोकगीत) के अनुसार जब देवी भगवती दैत्यों का वध करते हुए कैलाश की ओर बढ़ रही थी तो देवी के मुख्य रक्षक लाटू भी उनके साथ ही आगे बढ़ते हुए देवी को रास्ता दिखा रहे थें। चलते – चलते भगवती व लाटू जब वाण गांव पहुंचे तो तब तक रात हो गई। दोनों ही वाण में ही रूक गए। लाटू उस रात एक अकेली वृद्ध महिला के घर ठहर गए। रात को लाटू देवता को प्यास लगी तो उन्होंने वृद्धा से पानी की मांग की, जिस पर वृद्धा ने में असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि दूसरे कमरे में दो घड़े रखे हैं। उनमें से एक में पानी एवं एक में जाम अर्थात शराब है। तुम पानी वाले घड़े से पानी निकाल कर पी लो। अंधेरा होने के कारण लाटू ने गलती से जाम के घड़े से जाम निकाल कर पी लिया, जिससे उन्हें नशा चढ़ गया। जब वे उठे तो नशे में गिर पड़े और उनकी जिह्वा (जीभ) कट गई और वे गूंगे हो गए।जब सुबह लाटू द्वारा शराब का सेवन किए जाने की नंदा देवी को जानकारी मिली तो उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि अब वे (लाटू) उनके साथ सशरीर कैलाश की ओर नहीं आ सकते हैं। किंतु आगे की अगवानी लाटू का निशान अगवाई करेगा। नंदा ने वचन दिया कि जब भी वह कैलाश यात्रा के लिए जाएंगी तो बिना वाण में उनके इस स्थान में रुके बिना आगे नहीं बढ़ेगी। उसके बाद लाटू यहीं पर रह गए और नंदा कैलाश को रवाना हो गई।
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बेहद रमणीक है वाण गांव

वाण गांव में जिस स्थान पर लाटू मंदिर स्थित है, काफी अधिक रमणीक स्थल है। यहां पर सदियों पूर्व बना एक मंदिर आज भी है। इस मंदिर के गर्भगृह के कपाट बैसाख पूर्णिमा के दिन के अलावा लोकजात एवं राजजात के दौरान ही कुछ देर के लिए खुलते हैं। इस दौरान गर्भगृह में पूजा करने के लिए जाने वाला पूजारी आंखों में और मुंह पर पट्टी बांध कर अंदर जा कर पूजा अर्चना कर उसका कपाट बंद कर बाहर आ जाता है जबकि मंदिर का बाहरी कपाट छह माह के लिए श्रद्धालुओं की पूजा अर्चना के लिए खुला रहता है।
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गर्भगृह में क्या है?

वाण स्थित लाटू धाम के ऐतिहासिक मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में क्या है, यह रहस्य बना हुआ है। बताया जाता है कि गर्भगृह के अंदर एक पाथा (पहाड़ी क्षेत्रों में अनाज को मापने वाला लकड़ी का बर्तन) उलटा रखा गया है। उसके अंदर और क्या है, इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है और न ही अनहोनी के डर से कोई जानने का प्रयास करता है।
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इशारों में बताते हैं लाटू

लाटू देवता के पश्वा जब भी पूजाओं के दौरान नाचते हैं तो वे बोलते नही हैं, बल्कि उन्हें जो भी अपने भक्तों से बोलना होता हैं वे इशारों में ही बोलते हैं

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विधायक टम्टा ने किया आह्वान

थराली क्षेत्र के विधायक भूपाल राम टम्टा ने लाटू धाम को उत्तराखंड का महत्वपूर्ण धाम बताते हुए प्रदेशवासियों का आह्वान किया है कि चारधाम यात्रा की तरह यह भी शक्ति पूजकों के लिए आस्था का केंद्र है। उन्होंने आह्वान किया कि इस तीर्थ की भी यात्रा करें, यहां भक्ति और शक्ति का अनुभव तो होगा ही, प्रकृति के मनमोहक दर्शन भी होंगे।

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