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गेहूं में मानव जिनोम के आकार के एक-तिहाई नाप के चावल के ढाई गुणा जिनोम होते हैं

The genomes of ancient wheats, such as wild emmer, contain more of the DNA base pairs required to create proteins than that of humans. Domesticated hybrids, like bread wheat, are even larger. Bread wheat has nearly six times the number of DNA base pairs as humans (about 17bn compared with humans’ 3bn). That is in part because humans are diploid, with two sets of chromosomes, whereas the chromosomes of bread wheat come in sets of six (which correspond to the three ancient kinds of wheat of which bread wheat is a hybrid).

 

-uttarakhandhimalaya.in-

गेहूं की ब्रीड जीनोम की सीक्वन्सिंग का एक प्रारूप अंतर्राष्ट्रीय जनरल ‘सांइस’ में प्रकाशित हुआ। अंतर्राष्ट्रीय गेंहू जीनोम सीक्वन्सिंग संकाय -आईडब्ल्यूजीएससी द्वारा प्रकाशित किया गया। आईडब्ल्यूजीएससी में भारत भी एक सहयोगी है। कुछ वर्ष पहले तक गेहूं की जीनोम डीकोंडिग को बेहद कठिन कार्य समझा जाता था क्‍योंकि इसमें 17000 मिलियन आधार जीनोम और बहुत उच्‍च सादृश्‍यता के साथ प्रत्‍येक क्रोमोसोम तीन बार उपस्थित होता है। हाल के वर्षों में हुए प्रौद्योगिकी की उन्‍नतिकरण और 1950 के बाद गेहूं प्रजाति में हुए विकास से गेहूं के क्रोमोसोम की अलग-अलग सिक्‍वेसिंग संभव हो सकी। दुनिया में सबसे अधिक पैदा किए जाने वाले अनाज गेंहू के क्रोमोसोम आधारित सिक्‍वेसिंग प्रारूप की अंदरूनी संरचना, बनावट, विकास और जीनोम की जटिलता को बताया गया है।

देश के तीन प्रमुख संस्‍थानों पंजाब कृषि विश्‍वविद्यालय, लुधियाना रिसर्च सेंटर ऑन प्‍लांट बायोटेक्‍नालॉजी, नई दिल्‍ली और दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय दक्षिण परिसर, नई दिल्‍ली को डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्‍नालॉजी, भारत सरकार के वित्‍तीय सहयोग से गेहूं के क्रोमोसोम की डिकोडिंग की जिम्‍मेदारी सौंपी गई। इस कार्य को दो-ए नाम से निर्दिष्‍ट किया गया। गेहूं में मानव जिनोम के आकार के एक-तिहाई नाप के 900 मिलियन अथवा चावल के ढाई गुणा जिनोम होते हैं।

पौध विज्ञान अनुसंधान और प्रजाति विकास करने वालों के लिए जेनेटिक ब्‍लू प्रिंट एक अमूल्‍य संसाधन होता है। डीबीटी के सचिव डॉ. विजय राघवन ने बताया कि पहली बार गेहूं के क्रोमोसोम के संपूर्ण जीनोम को जानना संभव हुआ है। जीनोम संसाधन के उपलब्‍ध होने से इस पर शोध करने वाले हजारो शोधकर्ताओं को कम समय और कम लागत में इसकी मैपिंग और जीन की क्‍लोनिंग में सहायता मिलेगी।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (फसल विज्ञान) में उप महानिदेशक डॉ. स्‍वप्‍न दत्‍ता ने कहा कि गेहूं के जीन की डिकोडिंग से इसके जीन के प्रकार्य के विषय में समझ में वृद्धि होगी जिससे गेहूं के नए जेनेटिंक लाभों के विकास में सहायता मिलेगी। ब्रिडिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग से पर्यावरण के प्रभावों को सहन करने और अधिक उपज देने वाली प्रजाति के विकास में मदद मिलेगी।

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