इनकम टैक्स में कटौती होगी?
-Milind Khandekar
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने संसद को बताया था कि दूसरे क्वार्टर में GDP में गिरावट ‘temporary blip’ है लेकिन अब केंद्र सरकार ने ख़ुद कहा है कि इस साल GDP ग्रोथ चार साल में सबसे कम रहेगी. हिसाब किताब में हम लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है. आज हम चर्चा करेंगे कि मंदी का डर क्यों है? इसे दूर करने के लिए ब्याज दर और इनकम टैक्स दोनों में कटौती ज़रूरी हो गई है
पहले तो समझ लीजिए कि जीडीपी क्या है?
GDP ( Gross Domestic Product) का मतलब होता है कि देश में उस अवधि में बने सामान और सर्विस की कुल क़ीमत. यह मोटे तौर पर तीन बातों को लेकर बनता है.
हमारा- आपका खर्च ( Private Final Consumption Expenditure). यह GDP का 60% है
सरकार के अपने खर्च जैसे सेलरी (Government Final consumption Expenditure) यह GDP का 10% है.
नए प्रोजेक्ट पर खर्च जैसे नए कारख़ाने, सड़कें, बिल्डिंग. यह काम सरकार और कंपनियाँ दोनों करती है (Gross Final Capital Formation) यह GDP का 30% है.
केंद्र सरकार बजट से महीने भर पहले अनुमान जारी करती है कि इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की सेहत कैसी रहेगी. फ़ाइनल आँकड़े तो मई के आख़िर में आते हैं लेकिन बजट फ़रवरी में पेश होना होता है. ये आँकड़े बजट का आधार बनते हैं. ये आँकड़े कह रहे हैं कि इस साल जीडीपी ग्रोथ 6.4% रहेगी. यह केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक दोनों के अनुमान से कम है.
हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि महंगाई कम करने के लिए रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया था. महंगाई तो कम हुई नहीं, ग्रोथ कम हो गई. ब्याज दरों में बढ़ोतरी से लोगों के लिए लोन लेकर घर या कोई सामान ख़रीदना महँगा हो जाता है. कंपनियों के लिए भी लोन लेकर नया प्रोजेक्ट लगाना महँगा पड़ता है. सामान और सर्विस की खपत कम होती है.डिमांड कम होने से महंगाई कम होने लगती है. भारत में महंगाई तो कम नहीं हुई, खपत कम हो गई ख़ासकर शहरों में. खपत कम हो रही है तो कंपनी नया प्रोजेक्ट नहीं लगा रही हैं. हालाँकि सरकार के आँकड़े कह रहे हैं कि खपत इस साल बढ़ रही है. लोगों का खर्च 7% से बढ़ेगा.इस पर सरकार ने बजट में 11.11 लाख करोड़ रुपये का जो बजट कैपिटल खर्च के लिए रखा था वो वो नहीं रहा है. नवंबर तक 5.13 लाख करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं.
तो अब क्या करना होगा?
रिज़र्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती करने की ज़रूरत है. यह सिलसिला फ़रवरी में शुरू होने की संभावना है, नहीं तो अप्रैल से हो जाएगा. यह ग्रोथ बढ़ाने के लिए काफ़ी नहीं होगा. लोगों के हाथ में और पैसे देने की ज़रूरत है ताकि महंगाई की मार से जो हाथ खिंच रखा है वो खुल जाए. इससे कंपनियों की बिक्री भी बढ़ेगी. उनका मुनाफ़ा बढ़ेगा तो शेयर बाज़ार चढ़ेगा. इसका एक उपाय है कि इनकम टैक्स कटौती जाएँ. सरकार को सुझाव दिया गया है कि 15 लाख रुपये की आमदनी वाले लोगों का टैक्स कम किया जाए. इनकम टैक्स से सरकार की कमाई कॉरपोरेट टैक्स से ज्यादा हो रही है, इसलिए कटौती का स्कोप है. अब गेंद सरकार के पाले में है क्योंकि यह Temporary blip नहीं है.