उत्तराखंड 23 साल का हो गया, मगर अरमान फिर भी अधूरे
-अनन्त *आकाश*
उत्तराखण्ड की जनता के लिये 9 नवंबर महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। उसी दिन उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखण्ड राज्य बना। इस दिन राज्य की जनता आन्दोलन के शहीदों को बडे़ सम्मान से याद करती आई है । इस महत्वपूर्ण दिन को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि जिस उम्मीद को लेकर उत्तराखण्ड की जनता ने अनवरत् संघर्ष तथा आन्दोलनकारियों ने शहादतें दी थी । उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद उनका सही मायनों में अपना शासन होगा तथा जनता के अरमान पूरे होंगे ।
किन्तु शासकदलों की नीतियों के कारण न केवल उनके अरमान अधूरे रह गये हैं ,बल्कि हमारे राज्य की स्थिति पहले के मुकाबले बद से बदतर हुई है । अनियोजित विकास , 23 बर्ष में स्थायी राजधानी गैंरसैण न बनना ,बेरोजगारी तथा जन असुविधाओं के अभाव के परिणामस्वरूप तेजी से बढ़ते पलायन , पहाड़ी जिलों में जनसंख्या की कमी के परिणामस्वरूप इन जिलों में निरन्तर विधानसभा सीटों में भारी कटौती , आबादी के बहुत बड़े हिस्से का पहाड़ की तलहटियों के अलावा देहरादून ,हरिद्वार ,उधमसिंहनगर तथा नैनीताल के तराई क्षेत्र में पलायन से पहाड़ खाली हो रहे हैं। मैदानी जिलों में आबादी का दबाव बढ़ गया है , जिस कारण मैदानी जिलों में आबादी के परिदृश्य में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप मलिन बस्तियों का तेजी से विस्तार तथा जंगलों का तेजी से कटान व खेत खलिहान कंक्रीट में बदल गये हैं । समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रदुषित माहौल में रहने के लिये विवश है । अनियोजित विकास ने बढ़ती भ्रष्ट राजनेताओं अफसरों ,भूमाफियाओं की गैरकानूनी गतिविधियों को भारी बढ़ावा दिया है जो बढ़ते अपराधों का कारण बनी ।
भ्रष्ट राजनीतिज्ञों ,भूमाफियाओं तथा भ्रष्ट अफसरशाही का नापाक गठबंधन हमारे राज्य के लिये एक बहुत ही बिकराल समस्या बनी हुई है । कई कोई नेता ,अधिकारी तथा व्यवसायी जमीनों की खरीद फरोख्त तथा सरकारी भूमि पर कब्जे से जुडे हैँ। यहाँ तक पहाड़ में भी इनका नैक्सस तेजी से सक्रिय हो रहा है ,जिसे कारपोरेट घरानों का बरदहस्त है । अंकिता जैसे जधन्य हत्याकांड भी इसी का परिणाम है । आज इन परिस्थितियों से निकल पाना काफी मुश्किल हो रहा है। किन्तु यदि शासक सोच ले उसे जनहित में कार्य करना है, तो जो कुछ राज्य में चल रहा है ,धीरे – धीरे उसमें बदलाव लाया जा सकता है ।
फिलहाल हमें हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखण्ड राज्य के लिये जन आकांक्षाओं के अनुरूप योजनाओं तथा भू कानून बनाने की आवश्यकता है जो भूमि पर बेेेेेतहासा खरीद फरोख्त तथा कब्जों को रोक सके । आज बिडम्बना यह भी है कि हरेक निर्माण में गुजराती ,हरियाणा तथा दिल्ली बेस कम्पनियां शामिल हैं ,जिनकी स्वयं में कोई साख नहीं है ।
राज्य में केन्द्र द्वारा पोषित आधिकांश योजनाऐं यहाँ की जनता के हितों के अनुरूप नहीं है । राज्य नीति आयोग की राज्य विकास में भूमिका लगभग शून्य है । राज्य में डबल इंजन के नाम से राज्य सरकार केवल केन्द्र के हाथों की कठपुतली के अलावा कुछ नहीं है। राज्य में जो योजनाओं का आये दिन ढोल पीटा जा रहा उनमें से अधिकांश कर्पोरेट परस्त हैँ। जिनका लाभ यहाँ की जनता को न होकर अन्तत: कोरपोरेट घरानों व उनके चेहतों को ही होना है ।
पिछले कुछ सालों में बड़े लोगों के हितों के लिये अकेले आल वेदर रोड़ ,सड़क चौड़ीकरण,फ्लाईओवरों ,भीमकाय निर्माण की आढ़ में लाखों – लाख पेड़ ठिकाने लगा दिये गये हैं तथा अनापशनाप कटिंगें करवाकर पहाड़़ और घाटियों को पेड़ एवं बनस्पति बिहीन कर दिया जा रहा है । परिणामस्वरूप निरन्तर प्राकृतिक आपदाओं में वृध्दि हो रही है । स्मार्ट सिटी के नाम पर देहरादून के परेड ग्राउण्ड एवं अन्य पार्क तथा अन्य बचे खुचे स्थानों को सीमेन्टेड करवाकर जलश्रोतों को ही स्थायी तौर पर खत्म किया जा रहा है । भविष्य में भूमिगत जल की कमी से पेयजल समस्या विकराल रूप ले लेगी ।सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के खत्म होने से नीजि वाहनों की बाढ़ ने यातायात व्यवस्था मंहगी तथा ठप्प कर दी है । भारी पुलिस बल या फिर चालान काटने से समस्या यथावत रहेगी ।
राज्य में 23 सालों में नेता एवं अफसर चन्द दिनों में ही मालामाल हो गये। इनकी सम्पत्तियों की जांच समय – समय पर होनी चाहिए । यह भी जाँच हो कि राष्ट्रीय नेताओं की इस राज्य में कहाँ -कहाँ सम्पत्ति है ? सबका सही मायनों में खुलासा होना चाहिए । आपको मालूम हो कि त्रिपुरा हमारे राज्य जैसा ही छोटा एवं पहाड़ी राज्य है । जब वहाँ पर माणिक सरकार मुख्यमंत्री थे तो वे अपने लिऐ केवल एक ही गाड़ी का उपयोग करते थे । वह अपने टीनसैड के दो कमरों के मकान में रहते थे । उनकी पत्नी घरेलु कार्य के लिए रिक्शे का उपयोग करती देखी जा सकती थी । वहाँ मुख्य सचिव व अन्य आला अधिकारी भी बड़े – बड़े ताम झाम के साथ नहीं रहते थे । केरल जो सभी मायनों में देश का नम्बर एक राज्य है । वहाँ के नेताओं एवं नौकरशाहों की सादगी उदाहरणीय है ।यहाँ अधिकांश जिलों में जिलाधिकारी पद पर महिला अधिकारी तैनात है ,जो सही मायनों में प्रशासन की संवेदनशीलता को ही दर्शाता है । हमारे राज्य में आज व पहले भी जिन जिलों में जिलाधिकारी व अन्य मुख्य पदों पर महिलाऐं रही हैं वहाँ प्रशासनिक कार्यों से लेकर जन सम्पर्क में ज्यादा संवेदनशीलता तथा पारदर्शिता देखी गयी है । कुल मिलाकर हमें जरूरत है ,ऐसी सरकार एवं प्रशासनिक ढ़ाचे की जो यहाँ की जनता की भावनाओं एवं आंकाक्षाओं के अनुरूप कार्य करे ।
(नोट : प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैँ जिनसे एडमिन का सहमत होना जरूरी नहीं है )