शिमला के बाद नैनीताल भी लगा खिसकने ….मसूरी पर भी धंसने का संकट !

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The article of Jay Singh Rawat appeared in Amar Ujala’s edit page on Sept 26, 2023

-जयसिंह रावत

शिमला भूस्खलन के बाद आखिर जिसका डर था वह पहाड़ों की एक और रानी नैनीताल हकीकत के रूप में सामने आने लगा है। शिमला के समर हिल में गत 14 अगस्त को आये भूस्खलन से हुयी भारी तबाही के बाद एक तरह से नैनीताल और मसूरी समेत सभी पहाड़ी नगरों के लिये भी खतरे का सायरन बज चुका था। उससे पहले जोशीमठ तो धंस ही रहा था। शिमला भूस्खलन को बाकी पहाड़ी नगरों के लिये खतरे की घंटी माने जाने का कारण सभी की एक जैसी भौगोलिक और भूगर्वीय स्थिति थी। नैनीताल समेत सभी नगरों में बेतहासा आबादी बढ़ रही है और लगभग सभी के बारे में भूवैज्ञानिकों तथा पर्यावरणविदों द्वारा आपदाओं की चेतावनियां निरंतर दी जाती रही हैं। जिन्हें हम निरन्तर अनसुना करते रहे हैं।

गत सप्ताहन्त नैनीताल के मल्लीताल आवागढ़ क्षेत्र में भूस्खलन से एक दो मंजिला भवन पलक झपकते जमींदोज हो गया और उसके मलबे की चपेट में आने से दो अन्य घर क्षतिग्रस्त होने के साथ ही लगभग एक दर्जन अन्य घर खतरे की जद में आ गये। यह हादसा तब हुआ जबकि मानसून विदायी लेने जा रहा है। इसलिये अगले मानसून के लिये खतरे की गंभीरता को आंका जा सकता है।

भूस्खलनों से भरा पड़ा है नैनीताल शहर का

नैनीताल शहर का इतिहास भूस्खलनों से भरा पड़ा है जिसे हम याद करने का प्रयास नहीं करते। अपनी स्थाना के बाद से ही नैनीताल शहर में छोटी बड़ी में भूस्खलन की घटनाएं होती रही हैं। वर्ष 1867, 1880, 1898, 1924 और 1998 में हुई पांच बड़ी भूस्खलन घटनाओं से शहरी बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ और बड़ी संख्या में लोगों की जानें चली गई। इनमें से सर्वाधिक विनाशकारी भूस्खलन 18 सितंबर 1880 को था, जो 36 घंटे से अधिक समय तक लगातार भारी बारिश के बाद नैनीताल के उत्तर-पूर्व में उत्पन्न हुआ था। जिससे 43 यूरोपीय और 150 मूल निवासियों सहित 193 से अधिक लोगों की मौत हो गई। इन भूस्खलनों से नैनीताल की भूआकृति में भी बदलाव आया। भूस्खलनों की शुरुआत सन् 1866 के भूस्खलन से शुरू हुयी थी। इन प्राकृतिक चेतावनियों के बावजूद शहर का विस्तार होता गया और 17 अगस्त 1898 को एक और विनाशकारी भूस्खलन ने नैनी झील के दक्षिण-पूर्व में स्थित कैलाखान पहाड़ी को प्रभावित किया। इस त्रासदी में 28 लोगों के हताहत होने के अलावा संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचा। 1924 में बलिया नाला के बाएं किनारे पर हुए भूस्खलन से कार्ट रोड क्षतिग्रस्त हो गई और जान-माल और वनस्पति की भारी क्षति हुई। 17 अगस्त, 1998 को अयारपाठा पहाड़ी ढलान भूस्खलन हुआ था, जिससे सड़क, एक इमारत का हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ और मलबे से झील का एक हिस्सा प्रभावित हुआ था।

प्रकृति के साथ बेतहासा छेड़छाड़ का नतीजा सामने है 

भूस्खलन भी एक प्राकृतिक घटना है और ऐसी घटनाऐं धरती पर होती ही रहती हैं। लेकिन मानवीय लापवाही और प्रकृति के अनुसार चलने के बजाय विकास और विलासिता के लिये प्रकृति के साथ बेतहासा छेड़छाड़ के कारण हम न केवल इन प्राकृतिक घटनाओं की संख्या और आवृति बढा रहे हैं बल्कि जानबूझ कर स्वयं को खतरे के हवाले कर रहे हैं। पर्यटक नगरी नैनीताल की आपदाओं के अतीत से तो आंखें मूंदी ही गयी साथ ही भूवैज्ञानिकों की चेतावनियों का भी न तो व्यवसायियों और नागरिकों पर और ना ही सरकार तथा उसके योजनाकारों पर असर पड़ा। लिहाजा वहां पर्यटकों से ज्यादा से ज्यादा कमायी के लिये भवनों की तादात दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ती गयी। अतीव सुन्दर नीली झील के चारों ओर पहाड़ियों की गोद में बसा यह नगर पर्यटकों और ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल के बोझ तले चरमरा ही रहा था कि उस पर हाइकोर्ट का एक और असहनीय बोझ डाल दिया गया। हालांकि अब हाईकोर्ट को हल्द्वानी के गौलापार शिफ्ट करने का निर्णय ले लिया गया है। लेकिन इसके पीछे नैनीताल की भूगर्वीय और पर्यावरणीय धारण क्षमता न हो कर ट्रैफिक और आवासीय समस्या को ध्यान में रखा गया है।

भू वैज्ञानिकों की चेतावनियों की अनदेखी 

जिस तरह भूस्खलन जैसी आपदाओं के लिये मसूरी, जोशीमठ और बदरीनाथ जैसे नगरों की संवेदनशीलता के बारे में हीम, गैंसर, एम.पी.एस. बिष्ट, पियूष रौतेला आदि भूविज्ञानी अपने शोध पत्रों से आगाह करते रहे उसी तरह वी.के. शर्मा, प्रियंक जैन और इन्दरपाल सिंह जैसे अनेक भूवैज्ञानिक नैनीताल पर मंडराते खतरे से नागरिकों और सरकारों को आगाह करते रहे। रिसर्च गेट द्वारा जनवरी 2006 में प्रकाशित वी.के. शर्मा के भूस्खलन संवेदनशीता मानचित्र में नैनीताल की संवेदनशीलता को दर्शाया गया है। डा0 वी.के. शर्मा ने नैनीताल के भूस्खलन संवेदनशील मानचित्र में संवेदनशीतला के चार श्रेणियां दर्शायी हैं। इनमें सर्वाधिक संवेदनशील श्रेणी 80 प्रतिशत से अधिक कमजोर ढलानों की है। उसके बाद दूसरी श्रेणी 80 से लेकर 50 प्रतिशत कमजोर ढलानों की और तीसरी श्रेणर 50 से लेकर 20 प्रतिशत तक कमजोर ढलानों की तय की गयी है जबकि 20 प्रतिशत से कम कमजोर ढलानों को चौथी श्रेणी में रखा गया है। इसमें नैनी झील के उत्तर और उत्तर पूर्वी जोन के साथ ही दक्षिण की ओर बलिया नाला जोन को सर्वाधिक खतरे में रखा है।

 

नैनीताल भी दबता गया गया मानवीय बोझ से 

नैनीताल की भौगालिक संरचना तो भूस्खलन के लिये संवेदनशील है ही लेकिन इसकी संवेदनशीलता का बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी ने कई गुना बढ़ा दिया है। सन् 1881 में नैनीताल की जनसंख्या 6,576 थी जो कि 2011 में 41, 377 हो गयी। इसमें पर्यटकों की फ्लोटिंग आबादी अलग है। अखबार की 13 जुलाइ 2021 की रिपोर्ट के अनुसार उस सप्ताहन्त एक दिन में 9444 वाहनों ने नैनीताल में प्रवेश किया और 35,425 में से 33,300 को शनिवार रविवार को नैनीताल में गुजारने की अनुमति मिली। भूवैज्ञानिक प्रियंक जैन, इंदरपाल सिंह और मीनाक्षी जैन द्वारा 2006 से लेकर 2019 तक नैनीताल के भूउपयोग और भूमिआवरण पर किये गये अध्ययन के अनुसार इन 14 वर्षाें में नैनीताल के बिल्टअप एरिया (भवन निर्माण क्षेत्र) में 1.89 वर्ग किमी (68 प्रतिशत) का विस्तार हुआ जबकि खुले क्षेत्र में 19 प्रतिशत, हरित क्षेत्र में 22 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र में 18 प्रतिशत की कमी आई है। नैनीताल की धारण क्षमता पर इतने अधिक दबाव का दुष्परिणाम भांपा जा सकता है। नैनीताल शहर का बेतहासा विस्तार हो रहा है। उसके वार्डों की संख्या 15 हो चुकी है जिसमें 2011 की जनगणना के अनुसार 12,505 भवन थे जिनमें कई बहुमंजिले हैं और यही नहीं कई सौ साल से भी पुराने हैं जो कि अपने आप में आपदा की प्रतीक्षा में खड़े हैं।

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