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काश शेक्सपियर आज जीवित होते !

–गोविंद प्रसाद बहुगुणा

शेक्सपियर यदि आज जीवित होते तो राजनीतिक नेतागणों में उनको अपना स्पीच राइटर नियुक्त करने के लिए होड़ लग जाती। क्या कमाल की भाषा लिखते थे “All is well that ends well ” नामक नाटक में एक पात्र किसी व्यक्ति का चरित्र चित्रण कितने सहज और धाराप्रवाह के साथ वर्णन कर रहा है ।
“मेरा यकीन कीजिए मेरे हुजूर
यह मैं अपनी सीधी जानकारी के मुताबिक कह‌ रहा हूँ,
जिसमें उसके खिलाफ मेरी कोई रंजिश भी नहीं है ,
मैं उसको अपने रिश्तेदार की तरह अच्छे से जानता हूं
कि वह एक जाना पहचाना नामी कायर इंसान है,
बेइंतहा झूठ बोलने वाला कि जिसकी कोई हद नहीं है,
हर‌ एक घंटे‌ में वह अपने वायदे तोड़ता है ,
उसके पास एक भी गुण
भलमनसाहत और अच्छाई वाला नहीं है ,
जो आप हुजूर के ध्यान देने या मन बहलाने के भी काबिल हो‌!!।”
(“Believe it, my lord,
in mine own direct knowledge, without any malice, but to speak of him as my kinsman, he’s a most notable coward, an infinite and endless liar, an hourly promise-breaker, the owner of no one of good quality worthy of your lordship’s entertainment.)

अब जरा मर्चेंट ऑफ़ वेनिस नाटक में यहूदी Shylock का यह वक्तव्य भी देखिये –
“मैं तो अपने खिलाफ हुए अन्याय का बदला लूँगा
उसने मेरी बेइज्जती की
हजार लाखों बार मेरे रस्ते में रोड अटकाए
मेरा नुक्सान होने पर खूब हंसा
यदि मुझे कोई फायदा हुआ तो उसने मेरी मजाक उड़ाई
मेरे देश के प्रति घृणा व्यक्त की
मेरे सौदों को नाकाम करने की कोशिश की
मेरे दोस्तों को मेरे प्रति उदासीन करने की कोशिश की
मेरे दुश्मनों को मेरे खिलाफ भड़काया
और इस सबके पीछे उसके पास का क्या वजह थी ?
इसलिए कि मैं यहूदी हूँ ?
क्या यहूदी के हाथ पाँव नहीं होते ?
उसका कोई कद,या इज्जत नहीं होती ?
उसमें कोई भावना ,प्रेमभाव या महत्वाकांक्षा नहीं होती ?
?अरे भाई
वह भी वही खाना खाता है जो तुम खाते हो ,
उसको भी वही औजार चोट पहुंचा सकते हैं ,
उसको भी वही दुःख तकलीफ हो सकती है
जो तुमको होती है ,
उसके घाव भी उसी साधन से भरते होंगे ,
उसको गर्मी सर्दी वैसे ही सताती होगी
जैसे किसी क्रिस्चियन को सताती है
अगर तुम मेरे शरीर में कोई नुकीली चीज चुभाओगे
तो क्या मेरे खून नहीं निकलेगा ?
अगर मुझे गुदगुदी करो तो
क्या मुझे हंसी नहीं छूटेगी ?

(it will feed my revenge. He hath disgraced me,
and hindered me half a million;
laughed at my losses, mocked at my gains, scorned my nation, thwarted my bargains, cooled my friends, heated mine enemies, and what’s his reason? I am a Jew.
Hath not a Jew hands, organs, dimensions, senses, affections, passions? Fed with the same food, hurt with the same weapons, subject to the same diseases, healed by the same means, warmed and cooled by the same winter and summer, as a Christian is? If you prick us, do we not bleed?
If you tickle us, do we not laugh?)
GPB

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