संस्कृति, विकास एवं मिलन के प्रतीक हैं श्रीनगर और गौचर के मेले
-डॉ० राजेश भट्ट –
गढ़वाल हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में बसे शहर श्रीनगर एवं गौचर अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए क्षेत्र में ही नहीं बल्की प्रदेश में अपनी पहचान बना रहे हैं।
इन दोनों जगहों पर हर वर्ष लगने वाले मेले जहा हमारी पौराणिक संस्कृति और सभ्यता को संजोने और संरक्षित रखने का कार्य करते हैं । वहीं आपसी मिलन और भाईचारे को बढ़ावा देने साथ ही स्थानीय उत्पादों के व्यापार को प्रोत्साहन देते हैं। श्रीनगर के वैकुण्ठ चतुर्दर्शी मेले में कमलेश्वर महादेव मन्दिर में प्रत्येक वर्ष सन्तान प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान किया जाता है। मान्यता है कि कमलेश्वर महादेव मन्दिर में दम्पति अपने मनोकामना पूर्ण करने के उद्देश्य से पूरी रात भगवान शिव की अराधना करते हैं। यहां पर सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना होती है।
वहीं 1944 में भारत तिब्बत ब्यापार को बढावा देने के लिए शुरू हुआ गौचर मेला अपने 74 वे वर्ष में पहुंच गया है । व्यापार, संस्कृति एवं मिलन के अवसर प्रदान करते श्रीनगर और गौचर मेला उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले स्वतन्त्र धारा में चल रहे थे तथा इसके पश्चात् स्थानीय प्रशासन के हस्तक्षेप के कारण इन दोनों मेलों के स्वरूपों में विकासात्मक बदलाव देखने को मिला है। स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थानीय उत्पाद सांस्कृतिक झांकियां हेतु व्यवस्था प्रदान की जाती । परन्तु बाहरी व्यापारियों में बढ़ोतरी तथा स्थानीय उत्पादों में निरन्तर वर्ष दर कमी देखने को मिल रही है।
इन ऐतिहासिक मेलों में घर गाँवों में हुए अलग विशेष उत्पादन बढ़ी लोंकी. कद्दू, मूली, गाय, भेंस, बकरी का विशेष आर्कषण हुआ करता था परन्तु अब स्थानीय उत्पादों का व्यापार घटते हुए दिख रहा है। जिसे वर्ष भर प्रोत्साहन करने की आवश्यकता के साथ प्रचार-प्रसार एवं उत्साह वर्धन करने की आवश्यकता है।
इन मेंलों में प्रवासी ग्रामीणों को स्थानीय ग्रामीणों द्वारा निमंत्रण दिया जाता है। जिससे कि मास पर्यटन के भरपूर परिणाम देखने को मिलते हैं। श्रीनगर एवं गौचर मेला की भव्यता एवं ऐतिहासिक महत्व को बढाया जाय तो वर्षों से बाहर रह रहे परिवार उत्तराखण्ड विकास की झलक देखेंगे तथा रिवर्स पलायन के लिए उपयोगी होगा तथा स्थानीय उत्पादों के महत्व के साथ स्थानीय कृषकों को बाजार उपलब्ध होगा।
ये दोनों मेले मौसम अनुकूल के साथ ही यात्राकाल के अतिरिक्त मास पर्यटन को बढावा देंगे । इन मेलों में स्थानीय व्यापारियों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
(लेखक डॉ० राजेश भट्ट राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नागनाथ पोखरी सहायक प्राध्यापक हैं तथा बी०ए० पंचम् सेमेस्टर के छात्रों को गौचर एवं श्रीनगर के बैकुण्ठ चतुर्दर्शी मेले पर प्राजेक्ट कार्य भी करा रहे हैं। )