अदाणी अमेरिका में कैसे फँसे ?
-Milind Khandekar
हमारे अँगने में अमेरिका का क्या काम है? गौतम अदाणी के केस पर आपके मन में यह सवाल उठ सकता है. अदाणी पर भारत में रिश्वत देने का आरोप है. रिश्वत भारत के ही अधिकारियों को देने का आरोप है. सोलर बिजली बेचने के लिए रिश्वत देने का आरोप है वो भारत में ही बन रही है. जब भारत में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है तो फिर अमेरिका में केस कैसे हो गया? हिसाब किताब में समझेंगे कि अमेरिका का Foreign Corrupt Practices Act ( FCPA) क्या है जिसके तहत अदाणी पर केस हुआ है. क्या अदाणी इससे बच सकते हैं?
अमेरिका में 1977 में FCPA क़ानून बनाया गया था. 400 से ज़्यादा अमेरिकी कंपनियों ने माना था कि उन्होंने दूसरे देशों में बिज़नेस के लिए रिश्वत दी थी. इसे रोकने के लिए यह क़ानून बना था. इस क़ानून में रिश्वत देने के जुर्म की सजा व्यक्ति के लिए 5 साल जेल और जुर्माना है जबकि कंपनियों के जुर्माना. जर्मनी की Siemens , फ़्रांस की Airbus , स्वीडन की Ericsson , अमेरिका की Walmart, Goldman Sachs जैसी कंपनियों को रिश्वत देने के आरोप में जुर्माना हाल के वर्षों में चुकाना पड़ा है.
अब आते हैं गौतम अदाणी पर. उनकी कंपनी अदाणी ग्रीन से भारत सरकार की कंपनी Solar Energy Corporation of India (SECI) ने सोलर बिजली ख़रीदने का समझौता किया. अमेरिकी जाँच एजेंसी Federal Bureau of investigation ( FBI) का आरोप है कि सौदा महँगे रेट पर हुआ. SECI को यह बिजली राज्य सरकारों को बेचना थी लेकिन ख़रीदार मिल नहीं रहे थे.राज्य सरकारें बिजली नहीं ख़रीदती तो अदाणी का सौदा खटाई में पड़ सकता था. अदाणी पर आरोप है कि राज्य सरकारों की कंपनियों को SECI से बिजली ख़रीदने के लिए उन्होंने दो हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा रिश्वत देने का ऑफ़र दिया. इसमें सबसे ज़्यादा ₹1700 करोड़ आंध्र प्रदेश के लिए थे. बाक़ी रक़म छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, ओड़िसा और जम्मू कश्मीर में देने का आरोप है.
इस केस में FBI की एंट्री हुई क्योंकि SECI ने 12 गीगावॉट बिजली ख़रीदने का सौदा अदाणी के साथ साथ अमेरिका की एक कंपनी के साथ भी किया था. फिर भी अदाणी के फँसने का कारण बना अमेरिका के बाज़ार से बॉन्ड और लोन से पैसे उठाना. उन्होंने जब पैसे उठाये थे तो कहा था कि कंपनी कोई रिश्वत लेती देती नहीं है. FBI कह रहा है कि झूठ बोल कर पैसे उठाये हैं. फिर पिछले साल गौतम अदाणी के भतीजे और ग्रीन एनर्जी के CEO सागर अदाणी से FBI पूछताछ को भी कंपनी ने दबा दिया. सागर के फ़ोन से ही FBI को रिश्वत का पूरा प्लान पता चला था.
गौतम अदाणी के लिए यह केस ख़त्म होना ज़रूरी है. यह केस ख़त्म होने तक उनकी कंपनियों को विदेश से पैसे उठाने में दिक़्क़त हो सकती है. इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए उन्हें आने वाले समय में काफ़ी पैसा उठाना पड़ेगा. अब इस दिक़्क़त में उम्मीद की किरण है अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप . वो FCPA के घोर विरोधी रहे हैं. उनका मानना है कि यह क़ानून अमेरिकी कंपनियों के लिए बड़ी बाधा है. दूसरे देशों की कंपनियाँ रिश्वत देकर ठेके उठा लेती हैं जबकि अमेरिका की कंपनियाँ इस क़ानून के कारण पीछे रह जाती है. हालाँकि उन्होंने अपनी पहली टर्म में यह क़ानून ख़त्म नहीं किया था. अब क़ानून ख़त्म होता भी है तो पहले से चल रहे केस का क्या होगा यह अभी कहना मुश्किल है. एक थ्योरी यह भी है कि जुर्माना देकर अदाणी इस केस से छुटकारा पा सकते हैं. फिर भी भारत में इस केस को लेकर एजेंसियों की चुप्पी पर सवाल बने हुए हैं.