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पहाड़ की जिंदगी का पहाड़ सा बोझ ; स्वयं देखिये इस वीडियो में

-रिखणीखाल से प्रभुपाल सिंह रावत –

सर्व सुविधा संपन्न नगरों में बैठ कर हुकूमत चलाने वालों और नीतियाँ बनाने वालों को लगता है कि  देहरादून- नैनीताल या हरिद्वार की जैसी जिंदगी सारे उत्तराखंड के लोग जी रहे हैँ। पहाड़ों में पले बढ़े राजनीतिक हुक्मरान मैदानों में आ कर भूल जाते हैँ कि  उन्होंने पलायन क्यों  किया था। पहाड़ छोड़ कर नेताओं को तो पहाड़ जैसी कठिनाइयों से तो मुक्ति मिल जाती  है लेकिन जो पहाड़ नहीं छोड़ते उनके लिए जिंदगी कितनी कठिन है उसे इस वीडियो क्लिप में देखिये।

 

छडियाणी धूरा की युवती की मुख्यमंत्री से गुहार :

रिखणीखाल विकास खंड के ग्राम छडियाणी धूरा की युवती ने मुख्य मंत्री जी से गुहार लगाई है कि  “हमारे गांव की समस्याओं, परेशानियों को समझें । इस गांव की समस्या ये है कि सन 2001 में तत्कालीन विधायक धुमाकोट लेफ्टिनेंट जनरल अवकाशप्राप्त टी पी एस रावत के कार्यकाल में पाणीसैण नामक स्थान से डबराड तक लगभग 11 किलोमीटर सड़क स्वीकृत हुई थी,जिस पर निर्माण कार्य भी आरम्भ किया गया था लेकिन बीच-बीच न जाने क्या आपदा आयी कि सड़क का काम ठप्प हो गया। आधा अधूरा छोड़कर कार्य रोक दिया गया। तब से सड़क की स्थिति जस की तस बनी है।अभी भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। लोगों  ने बेहतरी के लिए नुमायनदा बदला था। जनरल साहब के बाद हुकूमत बदली मगर हालात नहीं बदले।”

“ये मुफ्त की सरकारी राशन हमें इस खड़ी पाँच किलोमीटर की चढ़ाई व 20-25 किलोग्राम बोझ के साथ महंगी  पड़ रही है।”

 

यह युवती कह रही है कि :

“हम 5 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में ब्रिटिश काल से ही खाद्य सामाग्री व अन्य घरेलू सामान आदि ढोते आ रहे हैं और आज के डिजिटल युग व आधुनिक भारत में भी सिर पर 20-25 किलोग्राम का बोझा ढोता रहे हैँ। पैदल मार्ग भी बडा विकट,ऊबड खाबड व झाड़ियों से घिरा हुआ है।पूरा रास्ता जंगल का है।हर कदम पर बाघ व जंगली जानवरों का आतंक बना है।इस जोखिम भरे रास्ते पर चलना बड़ा दूभर है।लेकिन हमारी परेशानी को कंन समझे।

वीडियो बनाते बनाते इस युवती का सांस भी फूल रहा है तथा भावुक भी हो रही है।कहती है कि भारत का अर्थ व्यवस्था में पांचवा स्थान बताया जा रहा है।क्या यही अर्थ व्यवस्था है? सरकार कहती है कि सन 2025 तक उत्तराखंड देश का नम्बर वन राज्य बनेगा, कभी कहती है कि अगला दशक उत्तराखंड का होगा।इस हालत में कैसे होगा जैसे हमारे गांव के लोग जीवनयापन कर रहे हैं।

“ये मुफ्त की सरकारी राशन हमें इस खड़ी पाँच किलोमीटर की चढ़ाई व 20-25 किलोग्राम बोझ के साथ महंगी पड़ रही है।”

अन्त में आमजन मानस से अनुरोध कर रही है कि इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि सरकार व जनप्रतिनिधियों तक पहुँचे और उनके ऑख कान खुलें।

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