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नार्को टेस्ट : आंदोलन की दिशा बदल न जाए

राजेंद्र सजवान
कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन कर रहे पहलवानों द्वारा छोड़ा गया नार्को टेस्ट का तीर अगर आत्मघाती साबित हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
पहलवानों ने अपनी लड़ाई को ग्लोबल मंच पर ले जाने के लिए हुंकार भरी तो लगा कि अब उनका आंदोलन सही दिशा में बढ़ चला है, लेकिन यकायक उन्होंने फेडरेशन अध्यक्ष बृजभूषण का नार्को टेस्ट कराने की मांग कर डाली।  जवाब में बृजभूषण ने भी बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट के नार्को टेस्ट की मांग कर दी।

लगभग तीन सप्ताह बाद पहलवानों की लड़ाई में एक बड़ा ट्विस्ट यह देखने को मिला कि वे जंतर मंतर से बाहर सडक़ों पर निकल पड़े, आम नागरिक और खेलप्रेमियों से अपनी लड़ाई को मजबूती देने की गुहार लगाने लगे। इस अभियान को मजबूती देने के लिए उन्होंने गांधी समाधि पर जाकर बापू से आशीर्वाद लिया और देशवासियों को संदेश भेजा कि राजनेता उनका शोषण कर रहे हैं। महिला सशक्तिकरण की बातें करने वाले झूठ पर झूठ बोल कर उनके धर्मयुद्ध को कमजोर कर रहे हैं। लेकिन उस समय जबकि पहलवान लगातार हावी होते दिखाई दे रहे थे, नार्को टेस्ट की मांग कर शायद उन्होंने बृजभूषण जैसे खिलाड़ी को हावी होने का मौका दे दिया। दूसरी तरफ, पहलवान हैं जो खाप पंचायतों, नागरिक संगठनों और संपूर्ण खेल बिरादरी से लगातार समर्थन मांग रहे हैं। इस बीच यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि कुछ शरारती तत्व उनके आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश में जुटे हैं। साक्षी मलिक,  विनेश फोगाट, संगीता फोगाट और बजरंग पूनिया के अनुसार जो लोग उनके न्याय युद्ध को राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि सरकार जानबूझ कर हमारी लड़ाई को कमजोर करने की कुचेष्टा में लगी है।

विनेश कहती हैं कि सरकार को सच में बेटियों की चिंता होती तो उन्हें इस कदर सडक़ों पर भटकने के लिए मजबूर नहीं किया जाता। साक्षी के अनुसार प्रधानमंत्री या अन्य कोई जिम्मेदार मंत्री हमें न्याय दिलाने के लिए आगे आता तो शायद इस कदर भटकना नहीं पड़ता। बजरंग पूनिया ने अपनी प्रतिबद्धता दोहताते हुए कहा कि वह इस लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर कर देंगे लेकिन पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उनके अनुसार खाप पंचायतों और किसानों को आंदोलन का हिस्सा बनाना गलत नहीं है, और न ही इसे किसी प्रकार की राजनीति माना जाए। सबकी बहन-बेटियां हैं और पूरा देश उनके समर्थन में नहीं उतरा तो बृजभूषण जैसे लोगों को बढ़ावा मिलेगा।

पहलवान कह रहे हैं कि उन्होंने अपने साथ हो रहे अन्याय का मामला वैिक मंच पर उठाया है, और कई देशों के खिलाड़ी और खेल मुखिया उनकी मदद को तैयार हैं। यदि सचमुच ऐसा हो रहा है, तो पहलवानों और सरकारी तंत्र के बीच कटुता स्वाभाविक है। वैसे भी उन्होंने आईओए अध्यक्ष पीटी उषा और जांच समिति की प्रमुख मैरी कॉम को सिरे से खारिज कर दिया था। पहलवान कह रहे हैं कि भारतीय खेलों की शीर्ष महिलाओं ने उन्हें धोखा दिया। खेल मंत्री और भारतीय खेल प्राधिकरण के अधिकारी भी गुनहगार को बचाते नजर आ रहे हैं, और उनके आंदोलन पर सरकारी मशीनरी बार-बार प्रहार कर रही है। कुछ पहलवानों के अनुसार जब बातचीत से काम नहीं बना और पहलवानों ने झुकने से इंकार कर दिया तो उनमें फूट डालने का भी प्रयास किया जा रहा है, लेकिन नार्को टेस्ट की मांग कर पहलवानों ने शायद आत्मघाती दांव खेला है, जिसकी काट बृजभूषण का पलटवार हो सकता है। शायद पहलवान अपने अध्यक्ष का शातिरपना भांपने में चूक गए। बृजभूषण को जो चाहिए था पहलवानों ने परोस कर दे दिया है। हालांकि नार्को टेस्ट को लेकर न्यायविद् और विशेषज्ञ एक राय नहीं हैं, और ज्यादातर का मानना है कि इस प्रकार का कोई टेस्ट होने नहीं जा रहा। वैसे भी ऐसे टेस्ट का कोई आधार भी नहीं है।

लेकिन पहलवानों ने नार्को रूपी कैच उछाला और नेता जी ने इसे बखूबी लपक लिया, लेकिन पहलवान नहीं मानते कि उनका आंदोलन भटक गया है। राजनीतिक दलों को आमंत्रित करना भी गलत नहीं है क्योंकि जब सरकार सच्चाई से मुंह मोड़ लेगी तो देश के किसान, जवान और आम और खास नागरिक से सहयोग मांगने में कोई बुराई नहीं है। विनेश फोगाट कहती हैं कि जो लोग उनके धर्मयुद्ध को क्षेत्र, जात और अखाड़े विशेष की लड़ाई बता रहे हैं, उनकी सोच में खोट है। इतना तय है कि यौन शोषण की शिकार पहलवानों को न्याय मिलने में जितनी देरी होगी, उनका और उनकी लड़ाई का हिस्सा बने लोगों का मनोबल टूट सकता है, और भारतीय खेल इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन किसी भी दिशा में बढ़ सकता है। बहरहाल, क्या नतीजा निकलता है, इसके लिए कुछ सप्ताह और महीनों तक इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन इतना तय है कि नार्को टेस्ट जुमला बन कर रह जाएगा।

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