नरम और मीठी चपाती बनाने वाली गेहूं की नई प्रीमियम गुणवत्ता की किस्म विकसित

RESEARCHERS HAVE DEVELOPED A WHEAT VARIETY WITH EXCELLENT BAKING QUALITY, HAVING SOFT AND SWEET CHAPATIS. THE WHEAT VARIETY CALLED ‘PBW1CHAPATI’ HAS BEEN RELEASED AT THE STATE LEVEL IN PUNJAB FOR CULTIVATION UNDER TIMELY SOWN IRRIGATED CONDITIONS. CHAPATI, A FLAT BAKED PRODUCT PREPARED FROM WHEAT, FORMS A CHEAP, PRIMARY SOURCE OF PROTEIN AND CALORIES AND IS THE STAPLE DIET IN NORTHERN WESTERN INDIA. THE DESIRED QUALITY CHARACTERISTICS FOR CHAPATI ARE GREATER PLIABILITY, PUFFABILITY, SOFT TEXTURE, AND LIGHT CREAMISH BROWN COLOUR, SLIGHT CHEWINESS WITH BAKED WHEAT AROMA. IN SPITE OF THE PART OF DAILY DIET, THE MODERN WHEAT CULTIVARS DO NOT POSSESS CHAPATI QUALITY TRAITS. TALL TRADITIONAL WHEAT VARIETY C 306 HAS BEEN THE GOLDEN STANDARD FOR CHAPATI QUALITY. LATER, PBW 175 VARIETY WAS DEVELOPED BY PAU AND HAD GOOD CHAPATI QUALITY. HOWEVER, BOTH THESE HAVE BECOME SUSCEPTIBLE TO STRIPE AND BROWN RUSTS. THE CHALLENGE NOW IS TO COMBINE HIGH YIELD POTENTIAL AND DISEASE RESISTANCE AND RETAIN THE ACTUAL CHAPATI QUALITY. UNTIL THE RELEASE OF THIS NEW VARIETY, C306, RELEASED IN 1965, HAD BECOME A BRAND IN ITSELF AND THE FARMERS DEPENDED ON THIS VARIETY FOR QUALITY IN SPITE OF IT BEING SUSCEPTIBLE TO FOLIAR RUSTS AND LODGING. NO OTHER WHEAT VARIETY BEFORE ‘PBW1CHAPATI’ HAS MATCHED THAT QUALITY STANDARD OF C306, AND SINCE THE LAST FEW YEARS, PUNJAB CONSUMER BASE HAD STARTED SHIFTING TO MP WHEAT, ADVERTISED AS PREMIUM FLOUR AND AVAILABLE AT EXORBITANT PRICES.— USR
-A PIB Feature edited by Usha Rawat-
शोधकर्ताओं ने गेहूं की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जिसमें पकाने की बेहतरीन विशेषता होती है और इनसे नरम और मीठी चपाती बनती है। गेहूं की इस किस्म को ’पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ कहा जाता है जिसे पंजाब में राज्य स्तर पर सिंचित दशाओं में समय से बुवाई के लिए जारी किया गया है।
गेहूं से बनी चपटी व पकी हुई खाद्य-वस्तु चपाती प्रोटीन और कैलोरी का एक सस्ता, प्राथमिक स्रोत है और उत्तरी पश्चिमी भारत में लोगों का मुख्य भोजन है। चपाती के लिए वांछित गुणवत्ता व विशेषताओं में अधिक कोमलता, हवा से फुलने की क्षमता, नरम बनावट और हल्का मलाईदार भूरा रंग, थोड़ा चबाने पर पके हुए गेहूं की सुगंध शामिल हैं। दैनिक आहार का हिस्सा होने के बावजूद, आधुनिक गेहूं की किस्मों में चपाती की गुणवत्ता के लक्षण नहीं होते हैं। लंबी पारंपरिक गेहूं की किस्म सी 306 चपाती की गुणवत्ता के लिए स्वर्णिम मानक रही है। बाद में, पीएयू द्वारा पीबीडब्ल्यू 175 किस्म विकसित की गई और इसमें अच्छी चपाती गुणवत्ता थी। हालांकि, ये दोनों धारीदार और भूरे रंग की रतुआ के लिए अतिसंवेदनशील हो गए हैं। अब चुनौती उच्च उपज क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को संयोजित करने और वास्तविक चपाती गुणवत्ता को बनाए रखने की है।
इस चुनौती को स्वीकार करते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की गेहूं प्रजनन टीम ने पीबीडब्ल्यू 175 की पृष्ठिभूमि में लिंक्ड स्ट्राइप रस्ट और लीफ रस्ट जीन एलआर-57/वाईआर-40 के लिए मार्कर असिस्टेड सेलेक्शन का उपयोग करके एक नई किस्म विकसित की है। उन्होंने इस किस्म को विकसित करने के दौरान विविध जैव रासायनिक परीक्षणों का उपयोग करके अलग करने वाली सामग्री का परीक्षण करके चपाती बनाने के मापदंडों को बरकरार रखा है।
अंतिम उत्पाद विशेष और बायो फोर्टिफाइड गेहूं के जर्मप्लाज्म का विकास पहले प्रजनन परिधि के तहत था और इसे स्वस्थ भारत थीम के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग पर्स अनुदान से बड़ा प्रोत्साहन मिला। इससे गुणवत्ता प्रजनन पर ध्यान देने के साथ एक व्यवहार्य व्यावसायिक उत्पाद विकसित करने के लिए विविध लक्षणों के लिए विभिन्न जीन पूलों को समेकित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इस प्रकार, यह उत्पादकता-उन्मुख प्रौद्योगिकी से पैदावार के साथ-साथ पोषण वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की तरफ एक बदलाव है। संसृत संकर से निकलने वाला और अधिक जस्ता, कम फाइटेट्स, उच्च कैरोटेनॉयड्स, कम पॉलीफेनोल्स और उच्च अनाज प्रोटीन सामग्री के नए संयोजन वाला गेहूं वैराइटी पाइपलाइन में आ गया है।
प्रमोशन आॅफ यूनिवर्सिटी रिसर्च एंड साइंटिफिक एक्सीलेंस (पर्स) के अनुदान से समर्थित, थर्मोसायकलर मशीन का उपयोग पीढ़ियों को अगल-अलग करने और अंतिम चयनित संतति में एक लिंक्ड स्ट्राइप रस्ट और लीफ रस्ट प्रतिरोधी जीन—’एलआर57/वाईआर40’ की उपस्थिति की निगरानी के लिए किया गया था। पर्स फंडिंग के तहत खरीदे गए रियोमीटर (जो आटे की चिपचिपाहट निर्धारित करता है) और आटा एलएबी (आटे के जल अवशोषण, आटा बनने का समय और अन्य आटा मिश्रण मानकों को निर्धारित करता है) जैसे उपकरण ने चयनित संततियों के कटाई के बाद की गुणवत्ता के विश्लेषण करने में मदद मिली।
इस नई किस्म के जारी होने तक 1965 में जारी सी-306 अपने आप में एक ब्रांड बन गया था और किसान गुणवत्ता को लेकर उस किस्म पर गुणवत्ता निर्भर थे, बावजूद इसके पत्ती में रतुआ लगने और रहने की संभावना रहती थी। गेहूं की नई किस्म पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ से पहले कोई दूसरी कस्म सी306 के गुणवत्ता मानक से मेल नहीं खाती थी और पिछले कुछ वर्षों से पंजाब के उपभोक्ता मध्यप्रदेश के गेहूं की तरफ मुखातिब होने होने लगे थे, जिसे प्रीमियम आटे के रूप में विज्ञापित किया गया था और यह काफी अधिक दाम पर उपलब्ध होता था।
गेहूं की किस्म ’पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ का मकसद अच्छी चपाती गुणवत्ता, स्वाद में मीठा और बनावट में नरम होने के कारण व्यावसायिक स्तर पर पैदा हुई इस रिक्ति को भरना है। चपाती का रंग समान रूप से सफेद होता है और यह घंटों सेंकने के बाद भी नरम रहता है