166 वीं बर्षगांठ पर बिशेष : 1857 की क्रान्ति आजादी के आन्दोलन में मील का पत्थर
-अनन्त आकाश
भारत के मुक्ति संघर्ष में 1857 की क्रान्ति आजादी के मुक्ति आन्दोलन में मील का पत्थर है । एक अनुमान के अनुसार लगभग 8 लाख से भी अधिक भारतीय इसमें शहीद हुऐ तथा 8 हजार अंग्रेज मारे गये । यह क्रान्ति जो 1757 में अंग्रेजों द्वारा पलासी युध्द जितने के बाद देश में चलाऐ जा रहे, अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण शासन तथा हड़पने की नीति के खिलाफ जनविद्रोह का प्रतीक है। जिसे तैयार होने में एक सदी लगी, यानि 100 साल लगे । किन्तु यह क्रान्ति अंग्रेजों के संगठित ताकत के सामने अधूरी रही । किन्तु क्रान्ति के दूरगामी परिणाम निकले। 1858 में इग्लैंड की महारानी ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन खत्म करते हुऐ हिन्दुस्तान के लिए कैबिनेट सचिव के अन्तर्गत 15 सदस्यीय कमेटी का गठन किया । हड़प नीति को समाप्त करते हुऐ कई सुधारों की घोषणा की ।
इस क्रान्ति का सम्पूर्ण नेतृत्व हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह बहादुरशाह जफर के हाथ में था । जिन्होंने सब कुछ गवाने के बाद भी अंग्रेजों के आगे झुकना मंजूर नहीं किया। अंग्रेजों ने उन्हें बन्दी बनाकर वर्मा (म्यानमार)भेजा जहाँ उनकी कैद में ही मृत्यु हुई। इस प्रकार हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह के लिए अपनी सरजमीं नसीब नहीं हुई । आज भी उनकी कब्र रंगून में मौजूद है । इतिहास गवाह है कि जहाँ बहादुर शाह जफर, रानी झांसी, वेगम हजरत महल आदि अंग्रेजों से लोहा ले रही थे वहीं कुछ हिन्दू राजा जिनमें ग्वालियर का सिंधिया परिवार, कोलकाता, मुम्बई, मद्रास के उच्च वर्ग परिवार अंग्रेजों के लिऐ प्रार्थनाऐं कर रहे थे तथा अंग्रेजों की मदद कर रहे थे । जैसे आजादी के आन्दोलन में कुछ लोगों ने अंग्रेजों के लिए न केवल मुखबिरी की बल्कि जनता की एकता को तोड़ने का भी काम किया ।
भारत की गुलामी के 100साल बाद सैनिक कारणों से 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में सैन्य विद्रोह हुआ इससे तीन दिन पहले 20 एन आई ए के सैनिकों ने बन्दूकें इस्तेमाल करने से मना कर दिया था । इसमें मुख्य कारण बैरकपुर छावनी में कारतूसों में सुअर एवं गाय की चरबी लगे कारतूसों को मुंह से तोड़ने के लिए विवश किया जा रहा था । 29 मार्च 1857 सैनिक मंगलदेश पाण्डे के नेतृत्व में सैन्य विद्रोह की शुरूआत हुई , जिसे अंग्रेजों ने बेरहमी से कुचलकर पूरी बटालियन को ही बर्खास्त किया । किन्तु बात ही नहीं रूकी 10 मई को यह विद्रोह मेरठ से शुरू होकर 11 मई 1857 को लखनऊ,कानपुर ,बरेली,बनारस, दिल्ली ,अवध,विहार ,झांसी सहित अनेक क्षेत्रों में फैल चुका था । सैनिक विद्रोह तेजी से राजनैतिक ,सामाजिक तथा आर्थिक कारणों से जन विद्रोह में बदलकर क्रान्ति का स्वरूप लेने लगा । जिसे इतिहास में 1857 की क्रान्ति के रूप में प्रसिध्दी मिली, जिसमें हड़प नीति के तहत बेरोजगार हो चुके कुलीन परिवारों सहित आम जनता के विभिन्न हिस्से शामिल थे ।समर्थन के पीछे वे लोग भी थे जिनका राजपाट अंग्रेजों ने कब्जा लिया था ।
वे लोग जो कारतूस में चरबी के प्रयोग को अपने धर्म पर हमला मान रहे थे। जिनमें हिन्दू मुस्लिम शामिल थे ,इस क्रान्ति में वे लोग भी शामिल थे । जिनके बेटों के साथ सेना में भारी भेदभाव हो रहा था व उसी काम के लिये भारतीय सैनिकों को कम अंग्रेजों को ज्यादा वेतन एवं सुविधाऐं दी जा रही थी तथा ज्यादा से ज्यादा पदोन्नति सुबेदारी तक थी,उन्हें अनिवार्य रूप से भारत से बाहर युद्ध के लिए भेजा जाने लगा और इस क्रांति वे भी महत्वपूर्ण हिस्से थे जिनके परिवार इग्लैण्ड के मैनेचैस्टर कपड़ा उधोग के कारण बेरोजगार हो गये थे तथा उनके घरेलू हथकरघा उधोग बन्द हो रहे थे । जिनमें जुलाहे आदि शामिल थे ।इस क्रान्ति हिस्से आदिवासी तथा कपास से जुड़े किसान आदि शामिल थे । हालांकि यह आन्दोलन उत्तरी क्षेत्र में काफी व्यापक था किन्तु दक्षिण में इसका असर नहीं था ।
आन्दोलन कुल दो साल दो महीने एक सप्ताह तक चला । 11 मई 2023 को क्रान्ति 166 बर्षगांठ पर सबक ले देश की एकता अखण्डता पर आंच नहीं आने देंगे ।
हिन्दियों में बु रहेगी ,जब तलक ईमान की ।
तख्त लंदन तक चलेगी , तेग हिन्दुस्तान की ।।