आपदा/दुर्घटना

उत्तराखण्ड: भूस्खलनों तले दफन होती जिन्दगियां

–जयसिंह रावत
इस साल के मानसून ने केरल में प्रवेश कर लिया है और जून के अंतिम सप्ताह या जुलाइ के प्रथम सप्ताह तक इसके हिमालयी राज्यों तक धमकने की संभावना है। इसके साथ ही इन पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन आपदा का संकट भी करीब आने लगा है। भूगर्भीय और भूआकृति संबंधी कारणों से उत्तराखण्ड भूस्खलनों के लिये देश का सर्वाधिक संवेदनशील राज्य है जिसके सभी 13 जिलों को इसरो और रिमोट सेंसिंग एजेंसी के भूस्खलन आपदा जोखिम के मानचित्र में सबसे ऊपर रखा गया है। बरसात में तो भूस्खलन आते ही हैं लेकिन उत्तराखण्ड में तो फरबरी की कड़के की ठण्ड में भी भूस्खलन और भूधंसाव आने लगे हैं जिसका ताजा उदाहरण जोशीमठ है।


रिपोर्ट में भूस्खलन की दृष्टि से भारत के जिन 147 सर्वाधिक संवेदनशील जिलों की रैंकिंग की गयी है उसके अनुसार उत्तराखण्ड का रुद्रप्रयाग जिला शीर्ष पर है। इसी जिले में केदार घाटी है जहां केदारनाथ स्थित हैं। सन् 2013 की केदारनाथ आपदा से पहले 1998 में इस घाटी में कई गांव भूस्खलन से प्रभावित हुये थे। भारत में भूस्खलन जोखिम रैंकिंग के हिसाब से रुद्रप्रयाग के बाद टिहरी को दूसरे नम्बर पर रखा गया है। टिहरी के बाद चमोली-19, उत्तरकाशी-21, पौड़ी-23, देहरादून-29, बागेश्वर -50, चम्पावत-65, नैनीताल-68, अल्मोड़ा-81, पिथौरागढ़-86, हरिद्वार 146 और उधमसिंहनगर को 147 वीं रैंक दी गयी है। रिपोर्ट के अनुसार 2014 में देश में वर्षा ऋतु में कुल 17,698 भूस्खलन दर्ज हुये थे जिनमें अकेले उत्तराखण्ड के 1593 भूस्खलन थे। कहा गया है कि 1988 से 2022 के बीच भूस्खलन की सबसे ज्यादा 12,385 घटनाएं मिजोरम में दर्ज की गई हैं। इसके बाद उत्तराखंड में 11,219, त्रिपुरा में 8,070, अरुणाचल प्रदेश में 7,689, जम्मू और कश्मीर में 7,280, केरल में 6,039 और मणिपुर में 5,494, जबकि महाराष्ट्र में भूस्खलन की 5,112 घटनाएं दर्ज की गई थी।

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