भारत में गिद्धों की संख्या कई लाखों से घटकर लगभग 32,500 तक ही रह गयी

-Uttarakhand Himalaya-
नयी दिल्ली 7 दिसबर। भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां दर्ज की गई हैं। भारत में विशिष्ट क्षेत्रों और पर्यावासों में गिद्धों की संख्या का आकलन नहीं किया गया है। हालांकि, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अलग-अलग समय पर अपने-अपने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में गिद्धों की संख्या का आकलन करते हैं, जिन्हें मंत्रालय के स्तर पर संकलित नहीं किया जाता है।
यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
मंत्री के अनुसार मंत्रालय के पास उपलब्ध विवरण के अनुसार भारत में गिद्धों की अनुमानित संख्या निम्नलिखित है:
प्रजाति का नाम | अनुमानित संख्या (2017) |
लंबी चोंच वाला गिद्ध ( जिप्स इंडिकस ) | 26,500 |
पतली चोंच वाला गिद्ध ( जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस ) | 1000 |
सफ़ेद पीठ वाला गिद्ध ( जिप्स बंगालेंसिस ) | 6000 |
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने राज्य सरकारों के सहयोग से प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के तहत गिद्ध प्रजनन केंद्र स्थापित किए हैं। ये सुविधाएं गंभीर रूप से लुप्तप्राय गिद्ध प्रजातियों जैसे कि लंबी चोंच वाले गिद्ध, सफेद पीठ वाले गिद्ध तथा पतली चोंच वाले गिद्ध के प्रजनन के लिए समर्पित हैं। उल्लेखनीय प्रजनन केंद्रों में हरियाणा में पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र, पश्चिम बंगाल में राजाभटखवा गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र आदि शामिल हैं, जहां गिद्धों को बंद कर के पाला जाता है तथा बाद में उन्हें प्राकृतिक पर्यावासों में छोड़ दिया जाता है।
अगस्त 2006 में, भारत के औषधि महानियंत्रक ने पशु चिकित्सा डाइक्लोफेनाक के उपयोग, बिक्री और निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत सरकार ने पशुओं के उपचार में इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए दवा डाइक्लोफेनाक की शीशी का आकार 3 मिलीलीटर तक सीमित कर दिया है। डाइक्लोफेनाक के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं जिनमें निम्नलिखित कदम शामिल हैं:
- सरकार ने 17 जुलाई, 2015 को जारी राजपत्र अधिसूचना संख्या जी.एस.आर. 558 (ई) के माध्यम से मानव उपयोग के लिए डिक्लोफेनाक की मल्टी-डोज शीशी की पैकेजिंग को एकल खुराक तक सीमित कर दिया।
- पशु चिकित्सा से संबंधित उपयोग के लिए वैकल्पिक दवा – मेलोक्सिकैम और टोलफेनामिक एसिड, जो गिद्धों के लिए सुरक्षित पाई गई है, अब पूरे देश में व्यापक रूप से उपयोग में लाई जाती है।
- पशु चिकित्सा से संबंधित नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लामेटरी दवाओं की डॉक्टर के पर्चे के बिना ओवर-काउंटर बिक्री नहीं; पशु चिकित्सा से संबंधित उपयोग के लिए डिक्लोफेनाक दवाओं की बिक्री की जांच के लिए फार्मेसी सर्वेक्षण; लक्षित पक्ष समर्थन और जागरूकता कार्यक्रम आदि भी चलाए जाते है।