उप चुनाव : बाबा केदार के भरोसे है बीजेपी कांग्रेस
-डा0 योगेश धसमाना-
भाजपा के लिए यह चुनाव इसलिए भी नाक का सवाल ,बन गया है,की यदि बीजेपी चुनाव को हारती है तो उनको पद से हटाने की कोशिश तेज हो जाएंगी यद्यपि सरकार की स्थिरता पर कोई संकेत नहीं है,पर भाजपा के अंदर अपना वर्चस्व बचाने का संघर्ष कर रहे नेताओं को मुख्यमंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोलने का अवसर मिल जाएगा।इसमें कतई कोई दो राय नहीं कि नौकरशाही नेतृत्व पर भारी पड़ती नजर आ रही है।इसका असर चुनाव परिणाम पर कुछ पड़ सकता है। भाजपा दल के भीतर आशा नौटियाल को टिकट देने से नाराज नेताओं को मनाने में सफल रही है।
इसलिए ठीक चुनाव घोषणा से पहले केदार पूरी में 600 करोड़ के विकास कार्यों की घोषणा से ठेकेदारों की बांछे खिल गई है।पर योजनाएं धरातल पर कितनी उतरती है,इसका फैसला अभी भविष्य की गर्त में छुपा है।जनता के बीच इस बात को लेकर आक्रोश देखा गया कि सरकार आखिर बद्री केदार धामों की पुरातन मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ क्यों कर रही है।इन्हें सरकार नगर बनाने से पूंजीपतियों की अय्याशी के लिए सैरगाह बनाने के लिए रास्ता क्यों दे रही है।
केदार शीला को दिल्ली ले जाने के सवाल पर भी बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है।इस प्रश्न पर स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा बार सफाई देने के बाद भी जनता में आक्रोश कम नहीं हुआ है। चुनावी मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान के बने रहने का कुछ नुकसान भाजपा को हो सकता है।
यूकेडी उमीदवार केवल उपस्थिति दर्ज करते नजर आ रहे है। कांग्रेस के मनोज रावत वक्ता और कुशल वक्ता के साथ अपने भाषण से भाजपा उमीदवार पर भारी दिखाई दिए। बीजेपी की अंदरूनी अंतर्कलह यदि चुनाव के दिन तक बनी रही तो इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।
आखिरी समय में चुनाव परिणाम किसके पक्ष में जाए,यह निश्चित है कि शैला रानी रावत की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने के लिएआखिरी मौका होगा।
बीजेपी की जीत इस बात पर निर्भर होगी कि धामी जी टीम कितना एकजुट हो की चुनाव के दिन मतदान प्रतिशत को कितना बड़ा पाती है।मतदाता अभी मौन है यह चुप्पी क्या गुल खिलाती है कहना कठिन है।एक बात चुप्पी से साफ है कि जनता में मतदान के प्रति उत्साह देखने को नहीं मिला। 60प्रतिशत से अधिक मतदान की संभावनाएं कम ही दिखाई दे रही है।