जीएमवीएन के चार बंगले पीपीपी मोड में सौंपने की तैयारी
-दिनेश शास्त्री
उत्तराखंड रोजगार सृजन के मामले में देश में दूसरे स्थान पर दर्शाया गया है लेकिन सरकार के कामकाज के तरीके को देख कर यह खबर चौंकाती है। कारण यह है की चारधाम यात्रा ड्यूटी पर तैनात किए गए सैकड़ों पीआरडी के जवानों को यात्रा पूरी हुए बिना ही घर भेज दिया गया है, इस बीच गढ़वाल मंडल विकास निगम के चार कमाऊ बंगलों के निजीकरण की रफ्तार तेज हो गई है जबकि वर्षों से नियमितीकरण की आस में अपना यौवन निगम की सेवा।में झोंक चुके कार्मिकों की सुध लेने को सरकार तैयार नहीं दिखती।
जीएमवीएन के जिन चार बंगलों को सरकार निजी।हाथों में देने पर आमादा।है वे बारामासी कमाई वाले हैं। ये हैं गढ़वाल टेरेस मसूरी, पर्यटक आवास गृह धनौल्टी, पर्यटक आवास गृह श्रीनगर और पर्यटक आवास गृह रुद्रप्रयाग। इन चारों बंगलों में पर्यटकों का आना जाना वर्षभर लगा रहता है। सरकार क्यों इन्हें निजी हाथों में देने पर तुली है, इसका।जवाब पर्यटन मंत्री ही बेहतर दे सकते हैं लेकिन यह फैसला हैरान इसलिए करता है कि आखिर चार की पांच चवन्नी बनाने पर तुली सरकार किसको लाभान्वित करना चाहती है।
मसूरी और धनौल्टी के बंगलों का किसी अक्षय जायसवाल नामक जीएस ए एक्सपर्ट से बीती 25 अगस्त को टोपोग्राफी सर्वे और वैल्यूएशन कराया गया। इसी व्यक्ति के नेतृत्व में गठित टीम द्वारा 29 और 30 अगस्त को श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बंगलों का टोपोग्राफी सर्वे और वैल्यूएशन कराया गया। तब से जीएमवीएन कार्मिक अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। उत्तराखंड पर्यटन विकास निगम इस संबंध में काफी समय से होमवर्क कर रहा था लेकिन तब बात सिर्फ कागजों तक ही थी लेकिन अब जबकि टोपोग्राफी सर्वे और निगम की इन परिसंपत्तियों का।मूल्यांकन तक हो चुका है तो जाहिर है निगम की शान कहे जाने वाले इन बंगलों का बच पाना असम्भव हो गया है। पीपीपी मोड का अंजाम।क्या होता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जाहिर है सैकड़ों लोगों का रोजगार खत्म होने वाला है।
सरकार निजीकरण की इस प्रक्रिया को प्रदेश में पूंजी निवेश के रूप में दिखा सकती है लेकिन देखा जाए तो यह उसका पुरुषार्थ नहीं है। कारण यह की ईमानदारी से देखें तो यह परिसंपत्तियां उत्तराखंड सरकार ने अपने पुरुषार्थ से नहीं जुटाई हैं। यह उसे उत्तर प्रदेश से बंटवारे में मिली हैं। संपति बेच कर चार दिन साहूकार बन कर आखिर सरकार जनता को संदेश देना क्या चाहती है। इसके उत्तर के लिए इंतजार करना होगा लेकिन पहली नजर में फैसला परेशान करने वाला है। वह इसलिए कि ये परिसंपत्तियां निगम पर बोझ नहीं थी बल्कि निगम का खजाना ही भर रही थी। घाटे वाली परिसंपत्तियों के बजाय लाभ वाले बंगलों को बेचना अगर आपको किसी दृष्टि से फायदे का सौदा लगता हो तो हमारा भी ज्ञानवर्धन करें।
इस बीच जीएमवीएन कर्मचारी संघ ने उत्तराखंड पर्यटन निगम के इस फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया है। निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मनमोहन चौधरी तथा महासचिव वी एम जुयाल के नेतृत्व में हुई आपात बैठक में पीपीपी मोड के निर्णय का विरोध करते हुए सरकार को चेताया गया है कि इस कदम को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
उन्होंने सरकार के सामने अपना पक्ष रख दिया है लेकिन सरकार अब जितना आगे बढ़ चुकी है, वहां से उसके लौटने की संभावना तो नहीं दिखती। हैरानी सिर्फ यह है कि घाटे वाले या सिर्फ यात्रा सीजन में चलने वाले टूरिस्ट बंगलों के बारे में सरकार को कोई जल्दबाजी नहीं है, उसकी फुर्ती इन बेशकीमती परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र के हवाले करने को लेकर हैरान तो करती ही है। इस मामले में आप क्या सोचते हैं? अपनी राय जरूर दें।