बाईस सालों में राज्य की बदहाली ही हुयी, न्याय नहीं मिला
–तुला सिंह तड़ियाल, नेता उक्रांद–
9 नवंबर 2022 को उत्तराखंड राज्य ने बाईस साल पूरे कर लिए हैं। इन बाईस सालों में राज्य की बदहाली को देखकर उत्तराखंड की जनता के लिए खुशी या जश्न मनाने जैसी कोई बात है नहीं यहां की जनता के लिए आज का दिन उन महान सपूतों को याद करने का है, जिन्होंने उत्तराखंड के सुनहरे भविष्य के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति दे है।
हम अपना अलग राज्य बनाकर भी इन बाईस सालों में उनके हत्यारों को सजा नहीं दिला पाए अभी तक हम इस छोटे से प्रदेश की राजधानी तय नही कर पाए यहां की परिसम्पतियों पर उत्तर प्रदेश अभी भी कुंडली मारकर बैठा है आज़ भी यहां के नौजवान दो जून की रोटी के लिए यहां से पलायन करने को मजबूर है। परन्तु यहां पर नौकरियां धड़ल्ले से बेची जा रही हैं यहां का बेरोजगार नौजवान आये दिन अपनी रोजी-रोटी के लिए सड़कों पर हैं यहां के जल जंगल जमीन पर माफियाओं का कब्जा होते जा रहा है पर्यटन के नाम पर समूचे प्रदेश में रिजार्ट संस्कृति विकसित हो रही है। जहां पर अंकित भण्डारी जैसे गरीब गुरुवा की बच्चियां इन मानव रुपी पिचाशों की हवश के शिकार हो रहे हैं।
ऐसे ही सैकड़ों बन्नतरा उत्तराखंड के गाड़ गधेरों में पनप रहे हैं। यह प्रदेश आज कमोबेश थाईलैंड की शक्ल अख्तियार कर चुका है। तथाकथित विकास कार्यों के नाम पर राजनेताओं व भ्रष्ट नौकरशों की जेबें भरी जा रही हैं कमीशन ऊपर से ही तय हो जा रहा हैै जिसके कारण बड़े बड़े फ्लाई ओवर व इमारतें छः महीने नहीं टिक पा रहे हैं सड़कों का तो और भी बूरा हाल है ।
बयालीस शहादतों के बाद बने यह राज्य आज पूरी तरह कम्पनी राज में तब्दील हो गया है जिन्हें हम अपने रहनुमा मानने की भूल कर रहे हैं दरअसल वे कम्पनी राज के मुखौटे हैं इनका काम अपने आकाओं के लिए धन इकट्ठा करना मात्र है जो जितना ज्यादा धन इकट्ठा कर कम्पनी में जमा करेगा उससे कम्पनी के मालिक का आशीर्वाद सदैव मिलता रहेगा। क्या ऐसे में राज्य के स्थापना दिवस पर जनता खुशी से झूम उठेगी ? उनके अन्दर उमंग उल्लास जैसी कोई बात हो सकती है ? ये मौका यहां के छात्र, नौजवानों, बुध्दिजीवियों व आम जनता के लिए आत्म चिंतन करने का है, लुटते उत्तराखंड को बचाने का है आखिर यह हमारी माटी है और हम इसके लाल हैं।