जब शहरों में रहने वाले पंचायत प्रतिनिधि केवल वोट मागने गांव आएंगे तो कैसे गावों का विकास होगा ! !
—रिखणीखाल से प्रभुपल रावत —
ऐसे में कैसे गाँवों का समग्र विकास होगा? जब पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि अपने जिले से बाहर निवास कर रहे हों।
रिखणीखाल के सामाजिक कार्यकर्ता रविन्द्र बिष्ट अपने क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार,घोटाले व विकास कार्यों के प्रति बहुत चिन्तित व व्यथित रहते हैं।उनका कहना है कि गांवों के समग्र विकास की चाबी व दारोमदार पंचायत स्तर के प्रतिनिधियों पर ही निर्भर होता है।लेकिन हमारे क्षेत्र में कतिपय पंचायत प्रतिनिधि चाहे प्रधान हो,क्षेत्र पंचायत सदस्य हो या जिला पंचायत आदि अपने क्षेत्र में न रहकर जिले से बाहर के शहरों,कस्बों कोटद्वार,देहरादून,रामनगर,काशीपुर आदि रहते हैं।वहीं से डिजिटल कार्य चलाते हैं जो कि गांवों के विकास के लिए अनुचित व बाधक साबित हो रहा है।वे अपने लोकतांत्रिक पद व गरिमा का दुरुपयोग कर रहे हैं।उन्हें न प्रशासन का भय है और न उन्हें चुने हुए लोगों का खौफ है।ये एक परम्परा बनती जा रही है।और अब चलन में भी आ गया है।
कमोवेश ऐसी स्थिति तब भी नजर आती है जब विकास खंड मुख्यालय में बी डी सी बैठक आहूत की जाती है तो ये नदारद पाये जाते हैं।रिखणीखाल प्रखंड में 81 ग्राम पंचायते हैं,उतने ही ग्राम प्रधान मौजूद हैं जिसमें 38 की संख्या में महिला प्रधान चयनित हैं।उनकी जगह भी पद का दुरुपयोग करते हुए उनके ससुर,पति,पिता,पुत्र व सगे सम्बन्धी आदि परिजन डिजिटल प्रधानी चला रहे हैं।जो कि संविधान की मूल धारणा के विपरीत व विरुद्ध है।वे पंचायतराज व्यवस्था को खुली चुनौती व धता बता रहे हैं।
ये मामले आला अधिकारियों व ब्लाक स्तरीय कर्मचारियों के संज्ञान में भी रहता है लेकिन वे भी मूकदर्शक बने हैं।सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे जो ठहरे।जैसे चल रहा है चलने दो।अपना समय काटा और चलते बने।लेकिन उन्हें नहीं पता कि पूरी पंचायत व्यवस्था ध्वस्त हो रही है।एक ऐसा ही मामला संज्ञान में आया है कि एक क्षेत्र पंचायत सदस्या एक साल से भी ज्यादा समय से जिले से बाहर नदारद है,कोई अता पता नहीं।न कोई ढूँढने वाला।पंचायतों में अधिकतर ऐसा ही चल रहा है,चाहे किसी भी स्तर का पंचायत प्रतिनिधि हो।
क्या कभी या कोई इस व्यवस्था को बदल सकता है? या एक परम्परा ही बन गयी है।